News Saga Desk
नई दिल्ली। पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने वर्ष 2019 में दूसरी बार सत्ता में आने के बाद से कई ऐसे महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं, जिनका सीधा ताल्लुक मुस्लिम समुदाय से था। पहले देश से तीन तलाक का खात्मा, यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) और अब वक्फ (संशोधन) विधेयक-2025 जैसे फैसलों ने देशभर में बहस छेड़ दी है।
वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मोदी सरकार ने तीन तलाक को आपराधिक बनाने वाला कानून बनाया। मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के उद्देश्य से इस कानून को पेश किया गया था। हालांकि, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और अन्य मुस्लिम संगठनों ने इसे पारिवारिक मामलों में सरकारी दखल बताया। महिलाओं के लिए इसे फायदेमंद मानने वाले संगठनों के बावजूद, इस कानून पर विरोध की लहर देखी गई।

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर मुस्लिमों की आपत्ति
वर्ष 2019 में पारित CAA ने पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक उत्पीड़न का शिकार रहे गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान किया। मुस्लिम संगठनों ने इसे मजहब के आधार पर भेदभावपूर्ण बताया और NRC से जोड़कर असुरक्षा महसूस की। शाहीन बाग आंदोलन जैसे बड़े विरोध प्रदर्शन हुए, जिनमें मुस्लिम महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
UCC: मुस्लिम बोले- समानता या धार्मिक पहचान पर खतरा
UCC के तहत सभी धर्मों के लिए एक समान व्यक्तिगत कानून लाने का प्रयास किया जा रहा है। उत्तराखंड और गुजरात जैसे राज्यों ने इस दिशा में कदम उठाए हैं। मुस्लिम संगठनों ने इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ पर हमला बताते हुए धार्मिक पहचान के नुकसान की आशंका जताई है। सरकार इसे लैंगिक समानता और राष्ट्रीय एकता की ओर एक कदम मानती है।
वक्फ संशोधन विधेयक, 2025: धार्मिक स्वायत्तता पर सवाल
अगस्त 2024 में लोकसभा में पेश किए गए इस बिल का उद्देश्य वक्फ बोर्ड के प्रबंधन में सुधार लाना है। इसमें गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने और संपत्ति सर्वेक्षण जैसे प्रावधान हैं। सरकार का कहना है कि इससे वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता आएगी और भ्रष्टाचार कम होगा। वहीं AIMPLB और जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसे संगठनों ने इसे वक्फ की स्वायत्तता पर हमला बताया है। उपरोक्त फैसलों पर मुस्लिम समुदाय के भीतर और बाहर तीव्र बहस हुई है। सरकार के समर्थकों का कहना है कि ये फैसले सुधार और समानता के लिए आवश्यक हैं, जबकि विरोधियों का कहना है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता और पहचान के लिए खतरा है।
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