वाराणसी, भारत अपनी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण और प्रचार-प्रसार की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठा रहा है। काशी की पवित्र भूमि पर देश का पहला ‘शास्त्र संग्रहालय एवं अनुसंधान केंद्र’ का शुभारम्भ हुआ है, जिसका उद्देश्य उद्देश्य वेदों, उपनिषदों, पुराणों और अन्य प्राचीन ग्रंथों का डिजिटलीकरण कर अगली पीढ़ियों तक ज्ञान का यह अनमोल भंडार पहुंचाना है। इस केंद्र की स्थापना को भारत को ‘ज्ञान आधारित विश्वगुरु’ बनाने की दिशा में एक सशक्त कदम माना जा रहा है। इसी विषय पर महाराष्ट्र सरकार के उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से बहुभाषी संवाद समिति ‘हिन्दुस्थान समाचार’ ने विशेष बातचीत की। प्रस्तुत है प्रमुख अंशः
‘शास्त्र संग्रहालय एवं अनुसंधान केंद्र’ जैसी पहल की भूमिका और आवश्यकता पर बात करते हुए एकनाथ शिंदे ने कहा कि इक्कीसवीं सदी में भारत को ज्ञान के आधार पर विश्वगुरु बनने का जो सपना है, उसका मूल हमारे प्राचीन ग्रंथों और संस्कृतिक विरासत में निहित है। इन ग्रंथों में केवल धार्मिक सामग्री ही नहीं, बल्कि विज्ञान, दर्शन, जीवनशैली और संस्कृति की गहराइयां छिपी हैं। हमारे शास्त्र हमारी संस्कृति की आत्मा हैं। ये केवल धार्मिक नहीं, बल्कि जीवन शैली, विज्ञान और दर्शन का भी अद्भुत संगम हैं। यदि हम इन्हें संरक्षित नहीं करेंगे, तो अगली पीढ़ी यह कभी नहीं जान पाएगी कि भारत क्या था।
पुरातन ग्रंथों के संरक्षण में डिजिटलीकरण के महत्व और सरकार की भूमिका को लेकर शिंदे ने कहा कि काशी में देश के पहले संग्रहालय का शुभारंभ हुआ है, जो सिर्फ ग्रंथों के संग्रह का केंद्र नहीं होगा, बल्कि शोध, अध्ययन और उनके डिजिटल रूपांतरण का भी प्रमुख माध्यम बनेगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के माध्यम से इस ज्ञान को अनेक भाषाओं में आम जनता तक पहुंचाने की योजना भी बनाई जा रही है। इसमें केंद्र और राज्य सरकारों का सहयोग सराहनीय है। उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा केंद्रीय बजट में सांस्कृतिक विरासत और शिक्षा के लिए विशेष प्रावधान की घोषणा इसका प्रमाण है।
ठाणे जिले (महाराष्ट्र) से इस अभियान की शुरुआत के विशेष महत्व को समझाते हुए उपमुख्यमंत्री ने कहा कि महाराष्ट्र का ठाणे जिला संतों की भूमि रही है। ठाणे का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व गहरा है। वहां के प्राच्यविद्या विशेषज्ञ डॉ. बेडेकर के पास 60,000 से अधिक दुर्लभ ग्रंथों का संग्रह है, जिसे संरक्षित करने की दिशा में यह एक बड़ा कदम है। यहीं से इस अभियान को गुरुपूर्णिमा से औपचारिक रूप से आरंभ किया जाएगा।
प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण के इस कार्य में युवाओं की भूमिका को रेखांकित करते हुए शिंदे ने कहा कि युवाओं की भागीदारी इस प्रयास में निर्णायक होगी। यदि युवा हमारी संस्कृति, धर्मग्रंथों और स्थापत्य की गहराई को समझेंगे, तो वे इसे दूसरों तक भी पहुंचा सकेंगे। इस कार्य को जिस गति से करने की आवश्यकता है। उसके लिए युवा जोश और दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत होगी। भारत एक युवा राष्ट्र है, यही युवा इसे ज्ञान में अग्रणी बना सकते हैं। इन युवाओं का कर्तव्य बनता है कि वो अपनी ऊर्जा से राष्ट्र को प्रगति की राह पर ले जाए और भारत को आध्यात्मिक शक्ति के रूप में स्थापित करते हुए इसे विश्व गुरू बनाने में योगदान दें।
शिंदे ने इस पुनीत कार्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के योगदान को विशेष रूप से उल्लेखनीय बताया। उन्होंने कहा कि संघ न केवल इन ग्रंथों का संरक्षण कर रहा है, बल्कि चुनौतियों को अवसर मानकर राष्ट्रप्रेम और संस्कृति चेतना का संचार भी कर रहा है। यह चेतना ही देश के युवाओं को सही मार्ग पर लाने या बनाए रखने में सहायक सिद्ध होगा। उन्होंने कहा कि इस वर्ष संघ का शताब्दि वर्ष भी है। ऐसे में यह शताब्दी वर्ष एक उपयुक्त अवसर है, जिसमें हम इस पहल को शुरू कर रहे हैं। गुरुपूर्णिमा से शुरू होकर यह कार्य राष्ट्रव्यापी रूप लेगा।
वेदों-उपनिषदों के ज्ञान पर शिक्षण संस्थानों में समावेश की योजना पर उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति के अंतर्गत इन ग्रंथों के अंशों को पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव तैयार हो रहा है। उन्होंने कहा कि छोटे-छोटे बिंदुओं के रूप में जानकारी यदि बचपन से दी जाए, तो बच्चों में संस्कृतिक चेतना और ज्ञान दोनों की वृद्धि संभव है। उन्होंने कहा कि डिजिटलीकरण का उद्देश्य ही केवल संग्रह तक सीमित नहीं है, बल्कि हर जिले में यह कार्य होना चाहिए ताकि हर शिक्षण संस्था इस ज्ञान से जुड़ सके।
प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण और प्रचार-प्रसार की इस योजना को एक राष्ट्रीय जागरण की ओर बढ़ता कदम बताते हुए एकनाथ शिंदे ने कहा कि यह पहल एक साधारण संग्रहालय निर्माण से कहीं आगे की योजना है। यह भारतीयता के मूल, उसकी चेतना और उसकी वैज्ञानिक सोच को पुनः प्रतिष्ठित करने का प्रयास है। यदि सरकार, समाज और युवा मिलकर इस दिशा में कार्य करें, तो यह सिर्फ अतीत का संरक्षण नहीं, बल्कि भविष्य की दिशा तय करने वाला कदम साबित होगा। उन्होंने कहा कि जैसे कहा जाता है कि ज्ञान बांटने से बढ़ता है और ये प्राचीन ज्ञान ही भारत को पुनः विश्वगुरु बनाएगा।
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