भारत का पानी पर बड़ा संदेश

NEWS SAGA DESK

इसी महीने 22 मार्च को मनाए गए विश्व जल दिवस पर भारत ने पूरी दृढ़ता के साथ दुनिया को बड़ा संदेश दिया है। हरियाणा के पंचकूला में ‘जल शक्ति अभियान: कैच द रेन-2025’ की शुरुआत करते हुए केंद्रीय जल शक्तिमंत्री सीआर पाटिल ने कहा कि अगर कभी पानी को लेकर तीसरा विश्व युद्ध लड़ा गया तो भारत उसका हिस्सा नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जल सुरक्षित भविष्य का निर्माण किया जा रहा है। पाटिल की यह टिप्पणी बेहद अहम है। इसकी वजह यह है कि दुनिया का 70 फीसदी हिस्सा पानी से तो घिरा है, लेकिन उसमें से पीने योग्य पानी लगभग तीन फीसदी है। 97 फीसदी पानी ऐसा है जो पीने योग्य ही नहीं है। सिर्फ तीन फीसदी पानी पर पूरी दुनिया जीवित है। जल संसाधन मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में एक वर्ष में उपयोग किए जाने वाले जल की शुद्ध मात्रा अनुमानित 1,121 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) है। वर्ष 2025 में पीने के पानी की मांग 1,093 बीसीएम तक पहुंच सकती है। 2050 तक यह 1,447 बीसीएम हो सकती है।

इस परिदृश्य के बीच जल शक्तिमंत्री की यह आश्वस्ति यह संकेत देती है कि भारत जल संकट से पार पाने के भरपूर इंतजाम कर रहा है। वैसे भी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व जल दिवस पर जल संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। मानव सभ्यता में जल की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हुए वह भावी पीढ़ियों के लिए इस अमूल्य संसाधन की सुरक्षा के लिए सामूहिक कार्रवाई का देशवासियों से आह्वान कर चुके हैं। यह कहने में कोई परहेज नहीं है कि देशवासी उनके आह्वान को गर्व के साथ लेते हैं। वह चाहे गंगा की सफाई का आह्वान हो या स्वच्छता अभियान। साल 2014 के बाद दोनों में अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिला है। इस साल जल शक्ति मंत्रालय ने जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए ‘जल शक्ति अभियान: कैच द रेन- 2025’ शुरू किया है। इसमें देश के 148 जिलों को जोड़ा गया है, क्योंकि यहां जल संकट की आशंका जताई जा रही थी। “जल संचय, जन भागीदारी: जन जागरूकता की ओर” थीम वाले इस अभियान में जलवायु परिवर्तन और बढ़ती जल चुनौतियों के मद्देनजर जल सुरक्षा, वर्षा जल संचयन और भू-जल पुनर्भरण के महत्व पर जोर दिया गया है। इस आयोजन के दौरान ही वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सहयोग से “जल-जंगल-जन: एक प्राकृतिक बंधन अभियान” भी शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य जंगलों, नदियों और झरनों के बीच पारिस्थितिक संबंधों को बहाल करना है। जल शक्तिमंत्री पाटिल ने कहा कि भारत के जल क्षेत्र में परिवर्तनकारी प्रगति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व का परिणाम है। आज पूरे देश में नागरिकों के दरवाजों तक पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ पेयजल पहुंच रहा है। उन्होंने दोहराया कि सामुदायिक भागीदारी महत्वपूर्ण है और प्रत्येक नागरिक के योगदान से ही वास्तविक अर्थ में जल सुरक्षा प्राप्त की जा सकती है।

पाटिल ने कहा कि जहां भी बारिश हो उसे इकट्ठा कर वहीं रिचार्ज करना होगा।

पंचकूला में जल शक्ति अभियान और स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के अंतर्गत कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं शुरू की गई हैं। इनमें शामिल हैं-वर्षा जल संचयन प्रणाली, बोरवेल रिचार्ज परियोजना, सूक्ष्म सिंचाई पहल, तरल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली, गोबरधन परियोजना और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन शेड प्रमुख हैं। हरियाणा के मुख्यमंत्री ने नायब सिंह सैनी ने कहा कि आज जल संरक्षण के लिए समावेशी और रणनीतिक दृष्टिकोण की नींव रखी गई है।सरकार ने “हर बूंद अनमोल” (हर बूंद मायने रखती है) के सिद्धांत के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की है।

मगर विश्व जल दिवस पर व्यक्त की गई कुछ आशंकाओं पर भी गौर करना होगा। मसलन जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने प्रधानमंत्री मोदी को खुला पत्र लिखकर भारत से ग्लेशियरों के संरक्षण में नेतृत्व करने की अपील की है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर ग्लेशियरों को बचाने के कदम नहीं उठाए गए, तो अगले महाकुंभ तक नदियां सूखकर रेत में बदल सकती हैं। वांगचुक हाल ही में अमेरिका की यात्रा से लौटे हैं। वांगचुक ने लद्दाख में एक ग्लेशियर से बर्फ का एक टुकड़ा लेकर अपनी यात्रा शुरू की थी। ताकि जलवायु परिवर्तन के कारण तेजी से पिघलते ग्लेशियरों की समस्या की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित किया जा सके। वांगचुक ने पत्र में लिखा है कि भारत को ग्लेशियरों के संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए, क्योंकि हिमालय पृथ्वी पर आर्कटिक और अंटार्कटिका के बाद बर्फ और बर्फीले पानी का तीसरा सबसे बड़ा भंडार है और इसे तीसरे ध्रुव के नाम से भी जाना जाता है। गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियां भी इन ग्लेशियरों से निकलती हैं। वांगचुक प्रधानमंत्री मोदी की ‘मिशन लाइफ’ योजना की सराहना करते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे प्रमुख ग्लेशियरों को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाना चाहिए और उनके संरक्षण के लिए खास नीतियां बनानी चाहिए।

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