भविष्य बताने वाले, वर्तमान से बेखबर?

News Saga Desk

जब भी आपदा आती है भविष्य बांचने वाले ऑफलाइन मिलते हैं। कई तो यह तक दावा करते हैं कि उनका ‘ऊपर वाले से सीधा संपर्क’ है। ऐसे देववाचक भी हर बड़ी आपदा, दुर्घटना या संकट के समय चुप क्यों हो जाते हैं? यह बड़ा सवाल इसलिए है कि क्या उनका दिव्य नेटवर्क केवल चढ़ावे और चमत्कार तक सीमित है? सवाल यह भी है कि इनका नेटवर्क अचानक उस समय क्यों डाउन हो जाता है जब कोई भयंकर आपदा, ट्रेन हादसा, प्लेन क्रैश, या भूकंप आता है? तकनीक प्रौद्योगिकी का जमाना है तो सवाल उठना लाजिमी है कि क्या इनकी ज्योतिषीय सेटिंग में कोई सर्वर एरर आ जाता है? या फिर ‘अदृश्य शक्ति’ भी सावधानी का बोर्ड लगाकर छुट्टी पर चली जाती है? यह प्रश्न अब मजाक नहीं, बल्कि गंभीर सामाजिक विमर्श का विषय बन चुका है।

अब जब कोई गंभीर संकट आता है, तो सबसे पहले न्यूज चैनल, वैज्ञानिक एजेंसियां या रेस्क्यू टीमें सक्रिय होती हैं। मगर वह बाबा नजर नहीं आते जिनका दावा होता है कि वे भविष्य देख सकते हैं या ईश्वर से सीधी बातचीत कर सकते हैं। यह वही लोग हैं जो टीवी पर, मंचों पर और यूट्यूब लाइव में हजारों लोगों के सामने आंखें मूंदकर बड़े भावुक अंदाज में कहते हैं-“बेटा, तेरा समय बदलने वाला है”, “तू अगले जन्म में साधु बनेगा”, या “तेरे कुल में बहुत बड़ा संत हुआ था”। लेकिन जब देश के किसी कोने में कोई बच्चा बोरवेल में गिरता है, जब प्लेन क्रैश होता है, जब कोई महामारी फैलती है-तो ये भविष्यवक्ता नदारद होते हैं।

सवाल यह उठता है कि यदि इनके पास सचमुच कोई ‘दिव्य दृष्टि’ है तो वो सार्वजनिक हित में क्यों नहीं लगाई जाती? क्या इनकी चेतना सिर्फ ‘प्रेम विवाह के उपाय’, ‘दुश्मन को वश में करने की विधि’ या ‘विदेश यात्रा कब होगी’ जैसे प्रश्नों तक ही सीमित है? क्या ईश्वर से सीधा संपर्क रखने वाले लोगों की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वे देश, समाज और मानवता के हित में समय रहते चेतावनी दें?

हाल ही में एक वायरल टिप्पणी ने सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां बटोरी- “इतने बड़े-बड़े भविष्य वक्ता, ऊपर वाले से सीधा संपर्क… फिर भी किसी बड़े हादसे की खबर तक नहीं मिलती!” यह वाक्य जितना सरल है, उतना ही तीव्र और तर्कपूर्ण भी है। क्योंकि यह धार्मिक चमत्कारों की उस ‘औद्योगिक प्रणाली’ पर सवाल खड़ा करता है जो लोगों की भावनाओं को भुनाकर अरबों का कारोबार करती है। आजकल हर गली-मोहल्ले में कोई न कोई ब्रांड है। किसी की टैगलाइन है “भाग्य बदलिए”, तो कोई कहता है “समस्या का समाधान सिर्फ 7 दिन में”। कुछ तो ऐसे हैं जो स्वयं को ‘ईश्वर का अवतार’ घोषित कर चुके हैं। लेकिन जब देश में कोई आपदा आती है, तो ये सब ‘अवतार’ अंडरग्राउंड हो जाते हैं। इनके आश्रमों में सन्नाटा छा जाता है और प्रवचन मंचों पर ‘प्रेस नोट’ चस्पा कर दिया जाता है-“बाबा जी ध्यान साधना में हैं, कृपया किसी अन्य समय संपर्क करें।”

विचार कीजिए, यदि ये लोग सचमुच संकट पूर्वानुमानित कर सकते हैं, तो क्यों नहीं एनडीआरएफ या प्रधानमंत्री कार्यालय को पहले से सूचित कर देते? क्यों नहीं आपदा प्रबंधन में इनका कोई उल्लेख होता है? कारण स्पष्ट है-इनकी ‘भविष्यवाणी’ एक मार्केटिंग उत्पाद है, एक प्रकार की ‘भावनात्मक ज्योतिषीय फैंटेसी’, जिसे धार्मिक आस्था की चादर में लपेटकर बेचा जा रहा है। दुख की बात यह है कि यह लोग आमजन की पीड़ा और अज्ञान का लाभ उठाकर एक ऐसा मायाजाल बुनते हैं जिसमें न तर्क है, न पारदर्शिता। इनकी भविष्यवाणी ‘जेनरिक’ होती है-“अगले 6 महीने बहुत चुनौतीपूर्ण होंगे”, “देश में बड़ी घटना होने वाली है”, “भूकंप या महामारी की संभावना है”। अब जरा सोचिए, ये तो किसी भी समय पर लागू किया जा सकता है। यह ‘वाटरप्रूफ’ भविष्यवाणी होती है-गलत हुई तो कहा जाएगा ‘तुम्हारी श्रद्धा कम थी’, सही हुई तो ‘देखा, बाबा ने पहले ही बताया था’!

बाजार ने भी इनकी दुकानदारी को बढ़ावा दिया है। टीवी चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक, हर जगह इनका बोलबाला है। इनके प्रवचन में भक्ति कम, ब्रांडिंग अधिक होती है। कोई यू-ट्यूब पर लाइव भविष्यवाणी करता है। कोई इंस्टाग्राम पर ध्यान सत्र लेता है। इनके पास एचडी कैमरे, माइक सेटअप, वीडियो एडिटर तो हैं पर जब देश को ‘दिव्य चेतावनी’ चाहिए होती है, तब इनका नेटवर्क फेल हो जाता है। यह विडंबना नहीं, त्रासदी है कि भारत जैसे देश में जहां विज्ञान, तकनीक और आपदा प्रबंधन की व्यापक ज़रूरत है, वहां संकट की घड़ी में लोग अब भी किसी ऐसे चमत्कारी की ‘फेसबुक लाइव’ पर आश्वासन खोजते हैं। यह एक गहरी सामाजिक असुरक्षा और वैज्ञानिक सोच की कमी का परिचायक है। यहीं पर जिम्मेदारी बनती है सरकारों, शिक्षकों और सामाजिक संस्थानों की। धर्म आस्था का विषय है, लेकिन जब वह वैज्ञानिक विवेक, सामाजिक उत्तरदायित्व और मानवता से दूर जाकर एक ‘कॉरपोरेट माया’ बन जाए, तो उसके खिलाफ खड़ा होना जरूरी है। यह कोई धर्म-विरोध नहीं, बल्कि अंधविश्वास-विरोध है।

भविष्यवाणी की आड़ में जो व्यावसायिक ढांचा खड़ा हुआ है, वह न केवल जन-संवेदनाओं से खिलवाड़ करता है, बल्कि आपदा के समय नागरिकों को दिग्भ्रमित भी करता है। जब किसी नदी में बाढ़ आती है, तो एनडीएमए और मौसम विज्ञान विभाग तो चेतावनी जारी करते हैं, लेकिन यह लोग चुप रहते हैं। जब ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त होती है, तब न तो किसी ज्योतिषी का वीडियो वायरल होता है, न ही कोई ‘भविष्यवक्ता’ ग्रीन रूम से बाहर आता है। सवाल यह भी है कि इनका ‘सीधा संपर्क’ किससे है? क्या वह संपर्क केवल उन्हीं दिनों काम करता है जब ‘दस लाख का यज्ञ’, ‘एक करोड़ का चढ़ावा’, या ‘विशेष पूजा’ आयोजित की जाती है? क्या ईश्वर को संपर्क में लाने के लिए भी ‘डेटा पैक’ रिचार्ज कराना पड़ता है? यह कटाक्ष नहीं, कटु सत्य है कि धार्मिक विश्वास अब एक टेलीकॉम योजना जैसा हो गया है—’पैसा दो, नेटवर्क भरोसेमंद होगा’।

एक आम नागरिक के नजरिए से देखें, तो यह धोखा है। क्योंकि जब जनता किसी संकट में होती है, तब उसे सही, सटीक, और वैज्ञानिक जानकारी चाहिए होती है, न कि दाढ़ी वाले किसी स्वयंभू के प्रवचन। इस पूरे परिदृश्य में कुछ संतुलित, विद्वान और सच्चे अध्यात्मविद् अपवाद हो सकते हैं, जो वास्तव में समाज सेवा और आत्मकल्याण की बात करते हैं। लेकिन बहुसंख्यक मंचों पर जो चल रहा है, वह एक भविष्य बेचने का उद्योग है-जिसमें भविष्य के नाम पर वर्तमान की चेतना को शिथिल किया जा रहा है।

अब समय है कि हम इस भविष्यवाणी तंत्र की पड़ताल करें। सरकारों को ऐसे फर्जी दावों पर निगरानी रखनी चाहिए। शिक्षा व्यवस्था में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्कशीलता को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। मीडिया को भी यह समझना चाहिए कि टीआरपी के चक्कर में वे किस तरह जनता को एक अंधकारमय राह पर ले जा रहे हैं। यह भी जरूरी है कि हम, आप, सब अब सवाल करना सीखें। अगली बार जब कोई बाबा मंच से यह कहे कि “अगले महीने बड़ी घटना घटेगी”, तो उनसे पूछें-“क्या, कब, कहां, कैसे?” यदि उनके पास उत्तर नहीं है, तो उनका भविष्य नहीं, आपकी जागरूकता उनका अंत तय करेगी। वरना यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा। आपदा आती रहेगी, जनता मरती रहेगी।


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