अहमदाबाद में ‘सपनों की उड़ान’ से सुलगते सवाल

News Saga Desk

अहमदाबाद में 12 जून की सुबह आम दिनों की तरह सामान्य थी। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि आज की दोपहर रुलाने वाली होगी। एअर इंडिया की फ्लाइट ए1-171 लंदन के गैटविक एयरपोर्ट के लिए उड़ान भरने कुछ ही सेकंड बाद क्रैश हो गई। यह हादसा सिर्फ अहमदाबाद को ही नहीं, पूरे राष्ट्र की आत्मा को झकझोर गया। इस विमान में 230 यात्री और 12 क्रू मेंबर थे। सभी की अपनी-अपनी कहानियां थीं। कोई पहली बार विदेश जा रहा था। किसी को बेटी की शादी में शामिल होना था। कोई नौकरी के लिए लंदन जा रहा था तो कोई अपने बेटे से मिलने। किसी ने शायद दरवाजा बंद करते समय पीछे मुड़कर देखा हो। मगर अधिकांश ने आखिरी बार कहा होगा-पहुंचकर फोन करना। लेकिन इसका मौका ‘सपनों की उड़ान’ भरने वालों को नहीं मिला।

इस विमान का बड़ा हिस्सा मेघानी नगर के मेडिकल छात्रावास पर भी गिरा। इससे वहा रह रहे छह छात्र भी मौत के मुंह में समा गए। यह युवा भविष्य में किसी की जान बचा सकते थे। दुर्भाग्य देखिए, उनकी अपनी जानें ही नहीं बच सकीं। किसी मोबाइल फोन की स्क्रीन पर शायद अभी भी ममता का ‘मिस्ड कॉल’ दिख रहा होगा। किसी के व्हाट्स ऐप पर अब भी “लैंड करते ही मैसेज करना” लिखा होगा।

हादसे में मर जाना अलग बात है, लेकिन बिना अलविदा कहे दुनिया छोड़ जाना एक अकल्पनीय दुःख होता है। एअर इंडिया का यह ड्रीमलाइनर विमान आधुनिकतम सुरक्षा तकनीक से लैस था। ड्रीमलाइनर 787 को उड्डयन जगत में विश्वसनीय माना जाता है। फिर सवाल उठता है-कैसे हुआ ये हादसा? क्या विमान में पहले से कोई तकनीकी गड़बड़ी थी? क्या मेंटेनेंस में लापरवाही बरती गई? या फिर यह एक दुर्भाग्यपूर्ण संयोग है?

कैप्टन सुमीत सबरवाल इस विमान को उड़ा रहे थे। वे 8200 घंटे के उड़ान अनुभव वाले वरिष्ठ पायलट थे। उनके साथ सह-पायलट क्लाइव कुन्दर भी थे। उनके पास भी पर्याप्त उड़ान अनुभव था। कहते हैं कि दोनों ने आखिरी क्षण तक विमान को कंट्रोल करने की कोशिश की। ब्लैक बॉक्स से मिली रिकॉर्डिंग में कैप्टन की अंतिम आवाज ‘मेडे कॉल’ के रूप मे दर्ज है। प्रशासन ने रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू करने में देर नहीं की। खबर फैलते ही अस्पतालों के बाहर परिजनों की चीखें सुनाई देने लगीं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने हादसे पर गहरा शोक व्यक्त किया है। हादसों के बाद हम अकसर संवेदनाएं प्रकट करते हैं। मोमबत्तियाँ जलाते हैं। सोशल मीडिया पर पोस्ट डालते हैं और फिर भूल जाते हैं। लेकिन इस बार कुछ बदलना होगा। कई परिवार ऐसे हैं जिनका एकमात्र कमाने वाला सदस्य इस हादसे में चला गया। कुछ ऐसे हैं जिनके तीन-तीन सदस्य एकसाथ उड़ान पर थे और अब उनकी कोई स्मृति शेष नहीं।

एक छह साल की बच्ची की तस्वीर वायरल हो रही है जो अपने दादा-दादी के साथ पहली बार विदेश जा रही थी। अब उसकी गुलाबी गुड़िया राख में मिली है। एक नवविवाहिता जो ससुराल के लिए रवाना हुई थी, अब ताबूत में लौटेगी। यह कहानियां तकलीफदेह हैं। इस हादसे के बाद हमें दो काम जरूर करने चाहिए। पहला-पीड़ित परिवारों को हर संभव सरकारी, कानूनी और मानसिक सहायता दी जाए। दूसरा-यह सुनिश्चित किया जाए कि भारत की कोई भी उड़ान हो, उसे उड़ने से पहले सौ बार जांचा जाए।

एक शोक रचना याद आ रही है-“जो उड़ने चले थे सितारे बन के, वो राख में अब निशान बन के रह गए।” यह दुर्घटना उन सभी यात्रियों को श्रद्धांजलि है जो सिर्फ मंज्ल की आशा लेकर चले थे और अब हमारी यादों का हिस्सा बन गए हैं। वे लौटकर नहीं आएंगे, लेकिन अगर हमने उनकी याद में सिस्टम को बेहतर बना दिया, तो शायद उनके जाने का कोई अर्थ रह जाएगा।


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