वैलेंटाइन डेः प्यार के उत्सव का नया बाजार
पिछले कुछ समय से ग्लोबलाइज्ड समाज में प्यार भी ग्लोबल ट्रेंड हो गया है। आज जहां इजहार और इकरार करने के तौर- तरीके बदल गए हैं, वहीं इंटरनेट के मौजूदा दौर में प्यार भी बाजारू हो चला है। प्यार का यह उत्सव एक बड़े बाजार को गिरफ्त में ले चुका है। हर जगह वैलेंटाइन की संस्कृति पसरती जा रही है। शहर से लेकर कस्बों तक यह तेजी से फैल चुका है।
बेटी नहीं बचाओगे, तो बहू कहाँ से लाओगे?
हरियाणा में एक कहावत है, “बेटी नहीं बचाओगे, तो बहू कहाँ से लाओगे?” हालांकि यह मान लेना गलत है कि सभी बेटियाँ भावी दुल्हन हैं, फिर भी यह मुहावरा एक ऐसे राज्य में लिंग-चयनात्मक गर्भपात के गंभीर परिणामों की ओर ध्यान आकर्षित करने में प्रभावी है, जो दशकों से “बेटियों की कमी” से जूझ रहा है। स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और आय में प्रगति के बावजूद भारत का जन्म के समय लिंग अनुपात (एसआरबी) कम बना हुआ है।
प्रयागराज महाकुंभ में वाटर एटीएम की सफलता के मायने
प्रयागराज महाकुंभ में वाटर एटीएम के प्रयोग ने ऐसे धार्मिक आयोजनों में इसकी सार्थकता पर चार चांद लगा दिए हैं। उम्मीद है कि देश में होने वाले ऐसे आयोजनों में वाटर एटीएम की व्यवस्था की
जागरूकता से ही होगा कैंसर पर नियंत्रण
कैंसर बीमारियों का एक जटिल समूह है जिसकी विशेषता असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि और प्रसार है । इसमें 100 से अधिक विभिन्न रोग शामिल हैं जो शरीर के विभिन्न अंगों को प्रभावित करते है। ये कोशिकाएं ट्यूमर नामक द्रव्यमान का निर्माण कर सकती हैं। जो शरीर के सामान्य कामकाज में हस्तक्षेप कर सकती हैं।
शक्ति संधान के साथ अग्रसर होता भारतीय गणतंत्र
भारत के प्रसंग में सामाजिक-राजनीतिक संरचनाओँ पर विमर्श औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक काल के अनुभवों से सीधे सीधे जुड़ता है। आधुनिक पश्चिम से उपजा और औपनिवेशिक परिवेश में पुष्पित और पल्लवित हुआ नज़रिया भारत और भारतीयता के बारे में स्वयं भारतीय विचारों को प्रश्नों के घेरे में खड़ा कर देता है। पर सत्य यह भी है कि देश, राज्य, राष्ट्र और गणतंत्र जैसी विचार-कोटियाँ निहित निजी स्वार्थ से ऊपर उठ कर समवेत रूप से राष्ट्रीय स्तर पर आपसी सहमति की अपेक्षा करती हैं। इतिहास गवाह है कि देश और जनता के हित के विषय में असहमति हिंसा और आक्रामकता को जन्म देती है।
विकसित भारत 2047 के लिए कृषि सुधारों में व्यापक दृष्टिकोण आवश्यक
1965 की एमएसपी व्यवस्था, जिसने मूल्य स्थिरता की गारंटी दी थी, तब से लेकर आज बाज़ार एकीकरण, स्थिरता और कल्याण की जटिल समस्याओं से निपटने तक भारत के कृषि सुधारों में नाटकीय रूप से बदलाव आया है। एमएसपी में बदलाव और पीएम-किसान जैसे कार्यक्रमों के बारे में हाल की चर्चाएँ कल्याण और अर्थशास्त्र के बीच संतुलन बनाने के प्रयासों को दर्शाती हैं। फिर भी, विकसित भारत 2047 को प्राप्त करने के लिए टिकाऊ कृषि को आगे बढ़ाना आवश्यक है। चावल और गेहूँ के उत्पादन के लिए प्रोत्साहन प्रदान करके, खाद्यान्न की कमी को कम करने के लिए एमएसपी प्रणाली लागू की गई थी। उदाहरण के लिए, 1966 में मैक्सिकन गेहूँ की किस्मों का आयात करके, भारत ने हरित क्रांति की शुरुआत की, जो चावल और गेहूँ के लिए गारंटीकृत एमएसपी पर निर्भर थी। राजनीतिक दबावों के कारण अंततः अधिक फसलों को कवर करने के लिए एमएसपी का विस्तार किया गया, जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्रीय असंतुलन हुआ।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोसः एक पराक्रमी योद्धा
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा दिया गया `जय हिन्द’ का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया। `तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का उनका नारा भी उस समय अत्यधिक प्रचलन में आया। आजादी की जंग में प्रमुख भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 23 जनवरी को 127 वीं जयंती मनाई जा रही है। उनकी जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनका पूरा जीवन ही साहस व पराक्रम का उदाहरण है।
जम्मू-कश्मीर में रेल सेवा का विस्तार विकास के नये द्वार खोलेगा
भारत का मुकुट कहा जाने वाला जम्मू-कश्मीर महत्वपूर्ण केंद्र शासित प्रदेश है। इसकी सीमाएं एक ओर पाकिस्तान के साथ लगी हैं, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय सीमा तथा वास्तविक नियंत्रण रेखा कहा जाता है, वहीं दूसरी ओर भारतीय सीमा चीन के साथ लगी है। यह सारी सीमाएं अक्सर अशांत रहती हैं। एक ओर पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए आतंकवादियों की घुसपैठ करवाता है तो चीन भी सीमा को लेकर नए-नए विवाद पैदा करता रहा है।
हर 12 साल में ही क्यों लगता है कुम्भ मेला? क्या है इसका महत्व?
कुम्भ मेला लगने वाला है। यह हर 12 साल में चार स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। कुंभ मेला इसलिए लगाया जाता है क्योंकि यह पौराणिक अमृत कलश की कथा, खगोलीय घटनाओं और कई अन्य धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा है। लेकिन कुम्भ मेला हर 12 साल पर ही क्यों लगता है, चलिए इसका कारण जानते हैं।
राशिफल : 13 जनवरी, 2025
मेष : अपने हितैषी समझे जाने वाले ही पीठ पीछे नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेंगे। पठन-पाठन में स्थिति कमजोर रहेगी। किसी से वाद-विवाद अथवा कहासुनी होने का भय रहेगा। मानसिक एवं शारीरिक शिथिलता पैदा होगी। जल्दबाजी में कोई भूल संभव है। आय-व्यय की स्थिति समान्य रहेगी। शुभांक-5-7-8