त्रेता और द्वापर युग से चिरंजीवी हैं भगवान परशुराम
भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम चिरंजीवी हैं। वे भगवान श्रीराम के समय भी थे और भगवान श्रीकृष्ण के समय भी मौजूद रहे, आज भी उन्हें साक्षात जीवित देव माना जाता है। भगवान परशुराम ने ही श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र उपलब्ध कराया था।
खेलो इंडिया में दिखेगा बिहार का दमखम
विकास के साथ जिस सर्व-समावेशिता की बात आज विश्व बैंक से संयुक्त राष्ट्र तक हर मंच पर होती है, उसके लिए हो रहे प्रयास देश के संघात्मक ढांचे की नई चमक को जाहिर कर रहे हैं। इस लिहाज से सबसे दिलचस्प है खेलों की दिशा में राज्यों का शानदार प्रदर्शन।
मजदूरों के महत्व को दर्शाता मजदूर दिवस
मजदूर दिवस मजदूरों के महत्व को दर्शाने का महत्वपूर्ण उत्सव है। भारत सहित दुनिया के बहुत से देशों में एक मई को मजदूर दिवस मनाया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य उस दिन मजदूरों की भलाई के लिए काम करने व मजदूरों में उनके अधिकारों के प्रति जागृति लाना होता है।
अब तो आतंक पर हो आर-पार
पहलगाम में आतंकियों ने जिस बर्बरता से हिन्दू पर्यटकों को निशाना बनाकर उनकी हत्या की है, वह कई बड़े सवाल खड़े करता है। सबसे पहला सवाल तो यही है कि क्या वास्तव में भारत में हिन्दू होना अपराध है, अगर नहीं तो पाकिस्तानी आतंकियों ने उन्हें केवल हिन्दू होने की सजा क्यों दी।
जम्मू-कश्मीर : हिन्दुओं की पहचान कर मार दी गईं गोलियां, कौन-सा भारत बना रहे हम
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने अंदर तक झकझोर दिया है। कहने को कहा जा रहा है कि विदेशी साजिश थी, पाकिस्तान का हाथ था लेकिन यह हाथ घर के अंदर आया कैसे? घर के भी कोई अपने थे, जो इस पूरे आतंकवादी घटनाक्रम में शामिल हैं।
संघर्ष के लिए तो दुर्गा उरांव भी हकदार है
संयुक्त बिहार में रांची जिला के मोराबादी दाल्हातु गाँव में फेतिया मुंडा और धाधु मुंडा के पुत्र का जन्म हुआ, नामकरण हुआ दुर्गा उराँव। बितते समय के साथ परिवार के बिच रहकर खेती किसानी भी किया।
डिजिटल दुनिया का मानसिक बोझ: जब स्टेटस छीनने लगे चैन
आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। स्टेटस, प्रोफाइल और पोस्ट के ज़रिये लोग अपनी ज़िंदगी का चमकदार पक्ष दिखाते हैं, जिससे दूसरों में असंतोष, ईर्ष्या और आत्म-संदेह पैदा होता है। यह तुलना और जिज्ञासा धीरे-धीरे मानसिक अशांति का कारण बन जाती है।
चॉक से चुभता शोषण: प्राइवेट स्कूल का शिक्षक और उसकी गूंगी पीड़ा
जब भी परीक्षाओं के रिजल्ट आते हैं तो अमूमन सरकारी स्कूलों के मुकाबले प्राइवेट स्कूलों के परिणाम बेहतर होते हैं।इसके पीछे इन स्कूलों के शिक्षकों की कड़ी मेहनत होती है। प्राइवेट स्कूलों में शिक्षकों से उम्मीदें तो आसमान छूती हैं, लेकिन उन्हें न तो उचित वेतन मिलता है, न सम्मान, न छुट्टी और न ही सुरक्षा।
Hanuman Jayanti 2025: क्यों साल में दो बार मनाई जाती है हनुमान जयंती? माता सीता से मिला था वरदान, जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा
हनुमान जी को सभी संकटों को दूर करने वाले और हर परेशानी से निजात दिलाने वाले देवता माना जाता है। इसलिए उन्हें संकटमोचन भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हनुमान जी इकलौते ऐसे देवता हैं, जो कलयुग में आज भी धरती पर वास करते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
जलवायु परिवर्तन पर देश में नई नीति की जरूरत
NEWS SAGA DESK भारतीय रिजर्व बैंक के मार्च बुलेटिन में प्रकाशित अध्ययन में एक गंभीर चिंता जताई गई है, जो देश में वर्षा के वितरण में तेजी से आ रहे बदलाव और खाद्यान्न फसलों पर इसके असर से जुड़ी है। अध्ययन कहता है कि भारतीय कृषि अब भी काफी हद तक मॉनसून पर निर्भर है। आधुनिक सिंचाई सुविधाओं के विस्तार और जलवायु परिवर्तन से बेअसर रहने वाले नई किस्मों के बीज तैयार होने से राहत तो मिली है मगर मॉनसूनी बारिश अब भी निर्णायक होती है। दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के दौरान होने वाली वर्षा खरीफ सत्र में कृषि उत्पादन के लिए बेहद जरूरी है। वर्षा का तरीका बदलने या सूखे जैसी स्थिति से फसल उगाने का चक्र बिगड़ जाता है और कीटों एवं पौधों से जुड़ी बीमारियों की समस्या भी बढ़ जाती है। पर्याप्त और समान वर्षा होने से कृषि उत्पादकता बढ़ जाती है। मॉनसून में अच्छी बारिश रबी सत्र के अनुकूल होती है। मिट्टी में पर्याप्त नमी रहने और जलाशयों में पानी का स्तर अधिक रहने से गेहूं, सरसों और दलहन जैसी फसलों की बुआई के लिए आदर्श स्थिति तैयार होती है। खरीफ सत्र में मोटे अनाज, तिलहन, दलहन और चावल की उपज में सालाना वृद्धि के आंकड़े देखें तो जिस साल दक्षिण पश्चिम मॉनसून सभी फसलों के लिए बेहतर रहा उस साल उत्पादन भी ज्यादा रहा लेकिन अतिवृष्टि ने मक्के और तिलहन की उपज बिगाड़ी। अध्ययन में कहा गया है कि उत्पादन इस बात पर भी निर्भर करता है कि मॉनसूनी बारिश कब आती है। उदाहरण के लिए जून और जुलाई में कम बारिश मक्का, दलहन और सोयाबीन के लिए खासतौर पर नुकसानदेह होती है क्योंकि मिट्टी में नमी कम होने के कारण बुआई अटक जाती है और पौधों की शुरुआती बढ़वार पर भी असर पड़ता है। इसी तरह कटाई के समय अत्यधिक वर्षा से तिलहन उत्पादन घट जाता है। पिछले साल मॉनसून में शानदार वर्षा और सटीक ठंड रहने से चालू वित्त वर्ष में फसलों का उत्पादन बेहतर रहने की उम्मीद है। अनुमान है कि पिछले साल के मुकाबले खरीफ का उत्पादन 7.9 प्रतिशत और रबी का 6 प्रतिशत बढ़ सकता है। भारतीय मौसम विभाग ने 2025 के लिए मॉनसून के अनुमान जारी नहीं किए हैं मगर विश्व मौसम विज्ञान संगठन का अनुमान है कि भारत में इस साल वर्षा सामान्य या इससे अधिक हो सकती है। ध्यान रहे कि जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश के पैटर्न में आने वाले बदलाव कृषि उत्पादन पर ज्यादा असर डाल सकते हैं। मौसम की अतिरंजना अब अनोखी बात नहीं रह गई है। भारत में पिछले साल 365 में से 322 दिन मौसम की अति दिखी थी। इससे देश में 4.07 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में लगी फसलें प्रभावित हुईं। 2023 में 318 दिन मौसम ऐसा रहा था। जब तक इन प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने के लिए बहु-आयामी नीति नहीं अपनाई जाती है तब तक ऐसी घटनाएं बढ़ती ही रहेंगी। पिछले साल कम और असमान वर्षा के कारण गर्म हवा और बाढ़ की 250 घटनाएं सामने आईं। जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ते तापमान और बाढ़ के कारण फसलों का उत्पादन घटने और इनमें पोषक तत्व कम होने का खतरा बढ़ता जा रहा है। बदलती परिस्थितियों को देखते हुए जलवायु के अनुकूल कृषि कार्यों की तरफ कदम बढ़ाना आवश्यक हो गया है। कृषि में जलवायु परिवर्तन सहने की क्षमता रखने तौर-तरीके, नालियों की प्रणाली में सुधार, बाढ़ एवं सूखा प्रबंधन और तकनीक अपनाकर कृषि क्षेत्र में क्षमता एवं टिकाऊपन बढ़ाया जा सकता है। लंबे अरसे के लिए जल प्रबंधन पर भी हमें सतर्क रहना होगा। जैविक या रसायन रहित कृषि के बजाय प्राकृतिक कृषि को प्रोत्साहित करना होगा। इससे अलग-अलग मियाद वाली विविध फसलों से किसानों की आय ही नहीं बढ़ती बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता भी बढ़ती है। कुल मिलाकर भारत को जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम करने और अनुकूल रणनीति अपनाने के लिए काम करना होगा।